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Happy Lohri 2018: भगवान शिव और सती की कहानी से जुड़ता है लोहड़ी का त्योहार

मकर संक्रांति से एक दिन पहले वाली शाम को पंजाब, हरियाणा व पड़ोसी राज्यों में बड़ी धूम-धाम से 'लोहड़ी ' मनाया जाता है. पंजाबियों के लिए लोहड़ी खास मायने रखती है.

Updated On: Jan 12, 2018 07:05 PM IST

FP Staff

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Happy Lohri 2018: भगवान शिव और सती की कहानी से जुड़ता है लोहड़ी का त्योहार

मकर संक्रांति से एक दिन पहले उत्तर भारत खासकर पंजाब में लोहड़ी का त्योहार मनाया जाता है. अलग-अलग नाम से मकर संक्रांति के दिन या उसके आस-पास भारत के कई राज्यों में कोई न कोई त्योहार मनाने की परंपरा है. इसी दिन तमिल पोंगल का त्योहार मनाते हैं. असम में इसी दिन बिहू का त्योहार मनाने की परंपरा है. इस प्रकार लगभग समूचे भारत में यह कई अलग-अलग रूपों में मनाया जाता है.

मकर संक्रांति से एक दिन पहले वाली शाम को पंजाब, हरियाणा व पड़ोसी राज्यों में बड़ी धूम-धाम से 'लोहड़ी ' मनाया जाता है. पंजाबियों के लिए लोहड़ी खास मायने रखती है. लोहड़ी के कुछ दिन पहले ही इसकी तैयारी शुरू हो जाती है. छोटे बच्चे गीत गाकर लोहड़ी के लिए लकड़ियां, मेवे, रेवड़ियां जुटाने में लग जाते हैं. लोहड़ी की शाम को आग जलाई जाती है. लोग आग के चारों ओर चक्कर काटते हुए नाचते-गाते हैं व आग में रेवड़ी, खील, मक्का की आहुति देते हैं.

आग के चारों ओर बैठकर लोग आग सेंकते हैं. रेवड़ी, खील, गजक, मक्का खाने का भरपूर आनंद लेते हैं. जिस घर में नई शादी हुई हो या बच्चा हुआ हो उन्हें खास तौर पर बधाई दी जाती है. घर में नई दुल्हन या और बच्चे की पहली लोहड़ी बहुत खास होती है.

क्यों मनाई जाती है लोहड़ी

लोहड़ी की कई कथाएं सुनने में आती हैं. एक कथा के मुताबिक, दक्ष प्रजापति की बेटी सती के योगाग्नि-दहन की याद में ही यह अग्नि जलाई जाती है.

लोहड़ी को दुल्ला भट्टी की एक कहानी से भी जोड़ा जाता है. दुल्ला भट्टी मुगल शासक अकबर के समय में पंजाब में रहता था. उसे पंजाब के नायक की उपाधि से नवाजा गया था. उस वक्त संदल बार में लड़कियों को गुलामी के लिए बलात् अमीर लोगों को बेच जाता था. दुल्ला भट्टी ने एक योजना के तहत लड़कियों को न केवल छुड़ाया बल्कि उनकी शादी की सारी व्यवस्था भी करवाई.

दुल्ला भट्टी एक विद्रोही था, जिसके पुरखे भट्टी राजपूत थे. उसके पूर्वज पिंडी भट्टियों के शासक थे जो कि संदल बार में था. अब संदल बार पाकिस्तान में स्थित है। वह सभी पंजाबियों का नायक था.

पूस की आखिरी रात

लोहड़ी पौष मास (पूस) की अंतिम रात को मनाई जाती है. कहते हैं कि हमारे बुज़ुर्गों ने ठंड से बचने के लिए मंत्र भी पढ़ा था. इस मंत्र में सूर्यदेव से प्रार्थना की गई थी कि वह पूस महीने में अपनी किरणों से पृथ्वी को इतना गर्म कर दें कि लोगों को ठंड से कोई नुकसान न पहुंचे. वे लोग इस मंत्र को पूस महीने की अंतिम रात को आग के सामने बैठकर बोलते थे कि सूरज ने उन्हें ठंड से बचा लिया.

भांगड़ा पर ठुमकते हैं लोग

पंजाब के लोग रंग-बिरंगे पोशाक में बन ठन के आते हैं. पुरुष पैजामा व कुर्ता पहनते हैं. कुर्ते के ऊपर जैकेट पर गोटा लगा होता है. इसी से मेल खाती बड़ी–बड़ी पगड़ियां होती हैं. सज–धजकर पुरुष अलाव के चारों ओर जुटते हैं और भांगड़ा करते हैं. चूंकि अग्नि ही लोहड़ी के प्रमुख देवता हैं, इसलिए चिवड़ा, तिल, मेवा, गजक आदि की आहुति भी अग्निदेव को चढ़ाई जाती है.

भांगड़ा आहुति के बाद ही शुरू होता है. नगाड़ों की थाप के बीच यह डांस देर रात तक चलता रहता है. लगातार अलग-अलग समूह इसमें जुड़ते जाते हैं. परंपरा के मुताबिक महिलाएं भांगड़े में शामिल नहीं होती हैं. वे अलग आंगन में अलाव जलाती हैं और गिद्दा करती हैं.

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