जिंदगी जीते हुए हमें अक्सर यही लगता है कि हम जो कुछ भी सोचते या करते हैं, वह सब ठीक है और जितनी भी गलतियां हैं, वो औरों में हैं. इंसान यही सोचता है कि उसकी अपनी सोच, अपनी आदतें, अपने विचार, अपने बोल, अपने कार्य सब ठीक हैं. वह सोचता है कि अगर कोई चीज ठीक नहीं हो रही है, तो औरों को समझना चाहिए कि वो ही गलती कर रहे हैं. इसी तरीके से हम औरों के अंदर गलतियां देखते रहते हैं और लोगों से यही कहते रहते हैं कि तुमने यह ठीक नहीं किया, तुमने वह ठीक नहीं किया.
जब हम संतों-महापुरुषों का जीवन देखते हैं, तो पाते हैं कि वो सबके अंदर अच्छाइयां देखते हैं. चाहे कोई इंसान अच्छा न हो, ठीक न हो, परंतु वो उसे गले लगाते हैं, उसकी अच्छाई की ओर देखते हैं. वो उसका बाहरी रूप देखने के बजाय उसके आत्मिक रूप की ओर ही ध्यान देते हैं. और बार-बार हमें भी यही समझाते हैं कि हम औरों की गलतियों की ओर न देखें और अपने आप को बेहतर करने की कोशिश करें.
दुनिया में जीते हुए हम तरह-तरह के लोगों से मिलते हैं. हर एक के कर्म अलग-अलग हैं, हर एक की सोच अलग-अलग है, हर एक के विचार अलग-अलग हैं, हर एक के ख्यालात अलग-अलग हैं. अगर हम सोचें कि सारे लोग हमारी मर्जी के मुताबिक चलेंगे, तो यह नामुमकिन है. हमें अपनी जिंदगी ऐसे जीनी है जिसमें हम सबके अंदर भलाई देखें, सबके अंदर की अच्छाई को देखें. वह तब होगा जब हम स्वयं को अपने सच्चे रूप में जानेंगे.
सब कुछ इंसान के अंदर है, पर हम बाहर खोज रहे हैं. प्रभु हमें अवश्य मिल सकते हैं. यह नहीं कि प्रभु सिर्फ संतों-महापुरुषों को मिलते हैं, हम सब प्रभु को पा सकते हैं. प्रभु का अंश हमारे भीतर है. जिसने भी ध्यान अंदर किया, उसने प्रभु को पा लिया. हमें जो यह मानव शरीर मिला है, इसमें आत्मा और परमात्मा दोनों बसते हैं. हमें केवल अपनी रूह को अंदर की दुनिया में उड़ान देनी है. प्रभु हमारे बहुत करीब हैं. उनसे करीब तो और कुछ हो ही नहीं सकता. हमें उन्हें सच्चे दिल से पुकारना है. हमें केवल अपना ध्यान बाहर से हटाकर अंतर की ओर करना है. उसके लिए हमें अपने आप को पाक करना है.
महापुरुष समझाते हैं कि अपनी जिंदगी को सद्गुणों से भरो, एक पवित्र जिंदगी जियो, एक पाक जिंदगी जियो, किसी के मददगार बनो. जब हम यह सद्गुण अपने अंदर ढालते हैं, तो हम प्रभु को पाने के रास्ते पर कदम उठाने के लायक बन जाते हैं. यह पहला कदम है ताकि ध्यानाभ्यास के दौरान हमारी रूह अंदर के मंडलों में पर्वाज कर सके, और फिर प्रभु के निजधाम पहुंचकर हमारी आत्मा का मिलाप परमात्मा में हो जाए. उस अवस्था में पहुंचने के लिए हमें अपने ध्यान को अंदर की ओर करना होगा. हमारा काम है मन को शांत करना, शरीर को शांत करना. जब हमारा शरीर और मन शांत होगा, तो उस अवस्था में हमें अपने अंतर में प्रभु की दिव्य ज्योति के दर्शन होंगे और हम प्रभु की दिव्य ध्वनि को सुन सकेंगे.
(लेखक सावन कृपाल रूहानी मिशन के प्रमुख हैं)
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