शरद ऋतु की विदाई के साथ माघ शुक्ल पंचमी जहां एक ओर ऋतुराज वसंत के आगमन का सूचक है वहीं दूसरी ओर संगीत व विद्या की देवी वीणावादिनी मां सरस्वती के अवतरण का दिन भी है. वसंत पंचमी को सभी शुभ कार्यों के लिए अत्यंत शुभ माना जाता है. इस पावन अवसर पर मुख्य रूप से विद्यारंभ, नवीन विद्या प्राप्ति एवं गृह-प्रवेश का आयोजन किया जाता है.
वसंत ऋतु में सरस्वती साधना
महाकवि कालिदास ने ऋतुसंहार नामक काव्य में इसे सर्वप्रिये चारुतर वसंते कहकर अलंकृत किया है. गीता में भगवान श्री कृष्ण ने मैं ऋतुओं में वसंत हूं कहकर वसंत को अपना स्वरूप बताया है. इसके अलावा वसंत पंचमी के दिन ही कामदेव और रति ने पहली बार मानव ह्रदय में प्रेम और आकर्षण का संचार किया था. इस दिन कामदेव और रति के पूजन का उद्देश्य दांपत्य जीवन को सुखमय बनाना है जबकि सरस्वती पूजन का उद्देश्य जीवन में अज्ञानरूपी अंधकार को दूर करके ज्ञान का प्रकाश फैलाना है.
ऐसे हुआ देवी सरस्वती का अवतरण
सृष्टि के प्रारंभिक काल में भगवान विष्णु की आज्ञा से ब्रह्मा जी ने जीवों की रचना की. अपनी सर्जना से वह संतुष्ट नहीं थे, उन्हें लगा कि कुछ कमी रह गई है जिसके कारण चारों ओर मौन छाया हुआ है. भगवान विष्णु से अनुमति लेकर ब्रह्मा जी ने अपने कमंडल से जल छिड़का, पृथ्वी पर जलकण बिखरते ही उसमें कंपन्न होने लगा. इसके बाद एक चतुर्भुजी स्त्री के रूप में अद्भुत शक्ति प्रकट हुई जिसके एक हाथ में वीणा तथा दूसरे हाथ में पुष्प था. अन्य दोनों हाथों में पुस्तक एवं माला थी.
ऐसे मिली जीव-जंतुओं को आवाज
ब्रह्मा जी ने देवी से वीणा बजाने का अनुरोध किया. जैसे ही देवी ने वीणा का मधुर नाद किया, संसार के समस्त जीव-जंतुओं को आवाज प्राप्त हो गई. जलधारा में कोलाहल व्याप्त हो गया व पवन चलने से सरसराहट होने लगी. तब ब्रह्माजी ने उस देवी को वाणी की देवी सरस्वती कहा. सरस्वती को बागीश्वरी, भगवती, शारदा, वीणावादिनी और बाग्देवी सहित अनेक नामों से पूजा जाता है. ये विद्या और बुद्धि की प्रदाता हैं, संगीत की उत्पत्ति करने के कारण ये संगीत की देवी भी कहलाती हैं.
सरस्वती पूजा का रहस्य
ब्रह्मवैवर्त पुराण के अनुसार वसंत पंचमी के दिन श्री कृष्ण ने मां सरस्वती को वरदान दिया - सुंदरी! प्रत्येक ब्रह्मांड में माघ शुक्ल पंचमी के दिन विद्या आरंभ के शुभ अवसर पर बड़े गौरव के साथ तुम्हारी विशाल पूजा होगी. मेरे वर के प्रभाव से आज से लेकर प्रलयपर्यन्त प्रत्येक कल्प में मनुष्य, मनुगण, देवता, मोक्षकामी, वसु, योगी, सिद्ध, नाग, गन्धर्व और राक्षस, सभी बड़ी भक्ति के साथ तुम्हारी पूजा करेंगे. पूजा के पवित्र अवसर पर विद्वान पुरुषों के द्वारा तुम्हारा सम्यक् प्रकार से स्तुति-पाठ होगा. वे कलश अथवा पुस्तक में तुम्हें आवाहित करेंगे. इस प्रकार कहकर सर्वपूजित भगवान श्री कृष्ण ने सर्वप्रथम देवी सरस्वती की पूजा की, तत्पश्चात ब्रह्मा, विष्णु , शिव और इंद्र आदि देवताओं ने भगवती सरस्वती की आराधना की. इसके बाद से उनकी पूजा होने लगी.
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