भारत में कुछ त्यौहार धार्मिक पहचान के साथ-साथ क्षेत्र विशेष की संस्कृति के परिचायक भी हैं. इन त्यौहारों में किसी न किसी रूप में प्रत्येक धर्म के लोग शामिल रहते हैं. जिस तरह पश्चिम बंगाल की दूर्गा पूजा आज पूरे देश में प्रचलित हो चुकी है उसी प्रकार महाराष्ट्र में धूमधाम से मनाई जाने वाली गणेश चतुर्थी का उत्सव भी पूरे देश में मनाया जाता है. गणेश चतुर्थी का यह उत्सव लगभग दस दिनों तक चलता है जिस कारण इसे गणेशोत्सव भी कहा जाता है.
भाद्रपद मास की गणेश चतुर्थी को विनायक चतुर्थी या सिद्धीविनायक चतुर्थी भी कहा जाता है. वहीं कुछ लोग इसे पत्तर चौथ और कलंक चतुर्थी भी कहते हैं. इसके पीछे भी एक बड़ी वजह है. कहते हैं गणेश चतुर्थी के दिन चंद्र के दर्शन नही करने चाहिए. मान्यता है कि चंद्र दर्शन करने से इस दिन कलंक लगता है.
क्या है कारण?
कहते हैं भाद्रपद मास की शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि को गणेश जी कहीं से भोजन कर के आ रहे थे तभी चंद्रमा उनके रास्ते में आ गए और उन पर हंसने लगे.. गणेशजी ने क्रोधित होकर चंद्रमा को शाप दिया कि आपका क्षय हो जाएगा और आपको जो भी देखेगा, उस पर झूठा कंलक लगेगा. गणेशजी के इस शाप के बाद चंद्रमा का तेज हर दिन कम होन लगा.
देवताओं ने इस शाप से बचने के लिए चंद्रमा को शिव भगवान की तपस्या करने के लिए कहा. चंद्रमा के तपस्या करने पर शिव प्रसन्न हुए और चंद्रमा को अपने सिर पर बैठाकर मृत्यु से बचा लिया. बाद में चंद्रमा ने गणेश जी से भी माफी मांगी. गणेशजी ने कहा मैं शाप खत्म तो नहीं कर सकता लेकिन कम कर सकता हूं. उन्होंने कहा अब से हर दिन आपका क्षय होगा लेकिन हर 15 दिन बाद आप अपने पूर्ण रूप में आ जाएंगे. इसी के साथ लोग हर दिन आपके दर्शन कर सकेंगे लेकिन गणेश चतुर्थी के दिन जो भी आपको देखेगा उसे झूठा कलंक लगेगा. यही कारण है कि गणेश चतुर्थी को कलंक चतुर्थी भी कहते हैं.
इस दिन क्या करें?
इस माह की चतुर्थी को गुड़, लवण (नमक) और घी का दान करना चाहिए. यह शुभ मान गया है और गुड़ के मालपुआ से ब्राह्मणों को भोजन कराना चाहिए. इस दिन जो स्त्री अपने सास और ससुर को गुड़ के पूए खिलाती है वह गणेश जी के अनुग्रह से सौभाग्यवती होती है.
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