एक बार भगवान शिव राक्षसों से युद्ध करने के लिए गए हुए थे. उस दौरान देवी पार्वती अपने घर कैलाश पर्वत पर अकेली थी.
माता पार्वती को स्नान के लिए जाना था लेकिन वो अकेली थी और बाहर सुरक्षा के लिए कोई नहीं था. जिसके बाद उन्होंने अपने मैल से एक आकृति बनाई.
इस आकृति में माता पार्वती ने जान डाल दी और गणेश जी अस्तित्व में आए.
छोटे भगवान को माता पार्वती ने यह आदेश दिया कि जब तक वह स्नान न करे ले तब तक किसी को अंदर नहीं आने दिया जाए. आज्ञाकारी होने के नाते भगवान गणेश ने यही किया.
जल्द ही भगवान शिव भी युद्ध खत्म होने के बाद लौट आए.
लेकिन उन्हें तब आश्चर्य हुआ जब एक छोटे लड़के ने उन्हें अपने ही घर में जाने से रोक दिया.
भगवान शिव को गुस्सा आ गया और उन्होंने अपनी सेना को उनका खात्मा करने को कहा.
लेकिन भगवान गणेश ने भी हार नहीं मानी और जवाबी कार्रवाई की.
इसके बाद भगवान शिव खुद आगे आए और गणेश जी का सिर धड़ से अलग कर दिया.
जब माता पार्वती को यह बात पता चली तो वो विलाप करने लगीं.
इसके बाद भगवान शिव ने भी अपनी गलती मानी और इसे सुधारना चाहा.
तब पार्वती ने भगवान गणेश के लिए दो शर्तें मांगी. पहली यह कि उनको वापस जिंदा किया जाए और दूसरी यह कि उन्हें देवातओं में सबसे पहले पूजा जाए.
इसके बाद भगवान शिव ने ब्रह्मा जी से कहा कि उत्तर दिशा में जो भी मिले, उसका सिर ले आओ.
ब्रह्मा जी गए और उत्तर दिशा में एक दन्त हाथी मिला, वे उन्हीं का सिर ले आए. जिसके बाद गणेश जी को हाथी का सिर लगाया गया.
इसके बाद उनमें जान डाली गई और भगवान शिव ने गणेश को अपना पुत्र घोषित कर दिया और इसी के साथ हमारे भगवान गणपति आए.
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