देशभर में गणेश चतुर्थी धूमधाम से मनाई जाती है. दस दिनों तक चलने वाले इस पर्व में इस साल 23 सितंबर को गणपति विसर्जन किया जाएगा. जितना महत्व गणपति पूजा का होता है उतना ही महत्व गणेश विसर्जन का भी होता है.
विसर्जन के दिन सुबह पूजा कर बप्पा को विसर्जन के लिए तैयार किया जाता है. नाचते-गाते और गुलाल उड़ाते हुए लोग पूरे शहर में गणपति को घुमाते हैं. इसी के साथ तरह-तरह की झाकियां भी निकाली जाती हैं. इस साल विसर्जन सुबह 8 बजे से ही शुरू हो जाएगा. गणेश विसर्जन 23 सितंबर को सुबह 8 बजे से शुरू होकर 12 बजकर 30 मिनट तक चलेगा. फिर दोपहर को 2 बजे से शुरू होकर साढ़े 3 बजे तक चलेगा. इसके बाद शाम को 6 बजकर 30 मिनट से फिर गणपति का विसर्जन शुरू होगा जो रात के 11 बजे तक चलेगा.
इसलिए होता है विसर्जन
अक्सर लोगों के मन में सवाल होता है कि गणपति विसर्जन क्यों किया जाता है. दरअसल, गणपति विसर्जन के पीछे धार्मिक मान्यताएं हैं. धार्मिक मान्यताओं के मुताबिक ऐसा माना जाता है कि महर्षि वेदव्यास ने महाभारत की कथा सुनाने के बाद भगवान गणेश का तेज शांत करने के लिए उन्हें सरोवर में डुबोया था. ऐसा कहा जाता है कि चतुर्थी के दिन वेदव्यास ने भगवान गणेश को महाभारत की कथा सुनानी शुरू की. वेदव्यास गणपति को लगातार 10 दिन तक कथा सुनाते रहे.
वहीं दूसरी ओर भगवान गणपति कथा लिखते रहे. आखिर में जब कथा पूरी हुई और वेदव्यास ने आंखें खोली तो उन्होंने पाया कि अत्यधिक मेहनत की वजह से भगवान गणेश का तापमान काफी बढ़ गया है. इसके बाद वेदव्यास ने उनका तापमान कम करने के उद्देश्य से भगवान गणेश को सरोवर में ले जाकर स्नान कराया. उस दिन अनंत चर्तुदशी थी और तब से ही गणपति प्रतिमा का विसर्जन करने की परंपरा शुरू हुई.
एकता का प्रतीक
इसके अलावा गणेश विसर्जन राष्ट्रीय एकता का भी प्रतीक माना जाता है. छत्रपति शिवाजी महाराज ने राष्ट्रीय संस्कृति और एकता को बढ़ावा देने के लिए सार्वजनिक तौर से गणेश पूजन शुरू किया था. वहीं 1857 की असफल क्रांति के बाद देश को एक करने के इरादे से लोकमान्य तिलक ने इस पर्व को सामाजिक और राष्ट्रीय पर्व के रूप में मनाकर इसकी फिर शुरुआत की. 10 दिनों तक चलने वाले गणेश उत्सव ने अंग्रेजी शासन को हिलाने का काम भी किया.
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