हर एक इंसान समझता है कि जो वह कर रहा है, वह सबसे अच्छा है. वह जैसी जिंदगी जी रहा है, उससे अच्छा कुछ नहीं हो सकता. कई बार हम यह भूल जाते हैं कि सद्गुणों का जिंदगी में होना बहुत जरूरी है. इंसान यह भूल जाता है कि जब उसके अंदर घमंड पैदा हो जाता है, तो फिर उसके कदम उसे प्रभु से दूर ले जाते हैं. बहुत सी बार प्रभु की खोज में लगे हुए लोगों के अंदर भी घमंड आ जाता है. इंसान सोचने लगता है कि मैंने बहुत दान-पुण्य किया है, मैं बहुत से तीर्थस्थानों पर गया हूं, मैं बाकायदगी से अपने धर्मस्थान पर जाता हूं, मैं औरों का ख्याल रखता हूं.
महापुरुष बार-बार हमें यही समझाते हैं कि हम ऐसी जिंदगी जिएं जो नम्रता से भरपूर हो. कुछ लोगों को अपने आप पर बड़ा घमंड होता है, उनको लगता है कि उनके कारण ही सबकुछ हो रहा है. वो सोचते हैं कि मैं बहुत अच्छा हूं, मैं बहुत पढ़-लिख गया हूं, मैंने बहुत पैसे कमा लिए हैं, मेरा बहुत बोलबाला है. कुछ ऐसे भी लोग होते हैं जो केवल यह नहीं समझते कि मैं बहुत अच्छा हूं बल्कि औरों को बताते भी फिरते हैं कि मैं बहुत अच्छा हूं, मेरे पास बहुत सारे पैसे हैं, मैंने यह नई कार खरीदी है, मैं यहां सैर कर के आया हूं, मेरे पास ये है, मेरे पास वो है. ज्यादातर लोग इन दो अवस्थाओं में ही जीते रहते हैं.
अपने अहंकार को काबू में न रखा जाए, तो फिर इंसान सच्चाई की जिंदगी नहीं जी पाता क्योंकि जहां पर घमंड आ जाता है, वहां पर आदमी बढ़-चढ़ कर बातें करना शुरू कर देता है, वह सच्चाई को भी बदल देता है. झूठी चीज को भी ऐसे दिखाएगा जैसे वह सच्ची हो. उसकी जिंदगी सच्चाई से दूर होनी शुरू हो जाती है. महापुरुष समझाते हैं कि इंसान अहंकार में सच्चाई से बहुत दूर चला जाता है. उसे अंदर से लगता है कि सब उसकी वाह-वाह करें. किसी की मदद करने के बजाय वह इंसान अपनी बड़ाई में ही लगा रहता है. अहंकार के कारण ही इंसान को गुस्सा भी आता है. अगर एक अहंकारी आदमी आया और सामने वाला भी अहंकारी निकल आया, तो पहला अपनी बात करेगा पर दूसरा उसकी बात सुनेगा नहीं. पहला सुनाना चाह रहा है, दूसरा सुन नहीं रहा, तो पहले के अंदर गुस्सा बढ़ता ही चला जाएगा.
महापुरुष समझाते हैं कि हम यह न सोचें कि सारे गुण जरूरी नहीं हैं. अधूरे और अनियमित विकास से हम अपनी मंजिल तक नहीं पहुंच सकते. हमें काम, क्रोध, लोभ, मोह, और अहंकार को काबू में करना है और एक संतुलित और स्थिर जिंदगी जीनी है. वह स्थिरता हमें तब मिलती है जब हम अंदर की दुनिया में कदम उठाते हैं. स्थिरता हमें तब मिलती है जब हम प्रभु की नजदीकी पाते हैं. इंसान को शांति तब मिलती है, उसकी जिंदगी में हलचल तब कम होती है जब वह अंतर में प्रभु की ज्योति और श्रुति के साथ जुड़ता है.
सब कुछ हमारे अंदर है, लेकिन इंसान का ध्यान बाहर की ओर है. अगर हम अपना ध्यान अंदर की ओर करेंगे, तो हम असलियत को जान जाएंगे. हमारे अंदर आध्यात्मिक जागृति आ जाएगी और हमारे कदम तेजी से प्रभु की ओर उठने शुरू हो जाएंगे. हम सब प्रभु को पा सकते हैं. हमें सिर्फ उन्हें दिल से, रूह की गहराई से पुकारना है. हमें अपनी रूह को उड़ान देनी है और अंदर की दुनिया में जाना है. अगर हम अंदर की दुनिया में जाएंगे, प्रभु की ज्योति और श्रुति के साथ जुड़ेंगे, तो हम इस शरीर से ऊपर उठकर, रूहानी मंडलों को पार करते हुए, प्रभु के निजधाम पहुंचकर अपनी आत्मा का मिलाप परमात्मा में करवा सकते हैं.
(लेखक सावन कृपाल रूहानी मिशन के प्रमुख हैं)
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